
पटना।
“भ्रष्टाचार और अपराध मुक्त हरित बिहार” – इस संकल्प के साथ राजनीति की राह पर उतरी भारतीय लोकहित पार्टी (बीएलपी) को चुनावी मैदान में उतरने से रोक दिया गया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रख्यात शिक्षाविद् व पर्यावरणविद् गुरुदेव श्री प्रेम ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि यह सिर्फ उनकी पार्टी को रोकने की कोशिश नहीं, बल्कि लोकतंत्र की सीधी हत्या है।
गुरुवार को प्रेमलोक मिशन स्कूल में आयोजित एक विशेष प्रेस वार्ता में गुरुदेव प्रेम ने कहा,
> “हमने चुनाव आयोग के सारे नियम-कायदे पूरे किए, फिर भी हमारी पार्टी को न तो पंजीकरण मिला, न ही चुनाव चिह्न। यह दर्शाता है कि कुछ ताकतवर लोगों को ईमानदार आवाज़ों से डर लग रहा है।”
गुरुदेव प्रेम ने साफ कहा कि बीएलपी की लड़ाई सत्ता पाने के लिए नहीं, बल्कि अन्याय, असमानता और भ्रष्टाचार के खिलाफ है। उन्होंने जनता से अपील की कि जहाँ बीएलपी के उम्मीदवार नहीं हों, वहाँ वे NOTA का बटन दबाकर अपना विरोध दर्ज करें।
“क्या बिना रिश्वत के कोई काम होता है?”
अपने तीखे और स्पष्ट शब्दों में गुरुदेव प्रेम ने कहा,
> “क्या आज बिहार में कोई ऐसा व्यक्ति है जो कह सके कि उसने बिना घूस दिए अपना सरकारी काम करवाया हो? अगर नहीं, तो यह बीते 30 वर्षों की विफल राजनीति का परिणाम है।”
उनका मानना है कि आज बिहार को एक ऐसी राजनीतिक क्रांति की ज़रूरत है जो हरित, पारदर्शी और न्यायपूर्ण शासन की नींव रखे। बीएलपी का विज़न सिर्फ चुनाव जीतना नहीं, बल्कि हरित बिहार, हरित भारत का निर्माण करना है।
सभी वर्गों की आवाज़ बनना चाहती है बीएलपी
गुरुदेव प्रेम ने बताया कि उनकी पार्टी किसानों, मजदूरों, व्यापारियों, युवाओं, ट्रांसजेंडर समुदाय, पत्रकारों और हाशिये पर पड़े हर वर्ग की आवाज़ बनकर सामने आई है। उन्होंने कहा,
> “हमारी पार्टी गरीबों की झोपड़ी से लेकर न्यायपालिका के गलियारों तक बदलाव लाना चाहती है। जब तक राजनीति और व्यवस्था से भ्रष्टाचार नहीं हटेगा, तब तक विकास सिर्फ फाइलों में रहेगा।”
“नई पार्टी बनाना अब अपराध है क्या?”
उन्होंने यह भी कहा कि अगर किसी नई पार्टी को पंजीकरण न देना एक नई परंपरा बन गई है, तो यह देश के लोकतंत्र के साथ सबसे बड़ा मज़ाक है।
> “बीएलपी जनता की पार्टी है और इसे रोकना, सीधा जनता की आवाज़ दबाने जैसा है।”
गुरुदेव प्रेम ने चुनाव आयोग और सरकार दोनों से जवाब माँगा है कि जब सारी वैधानिक प्रक्रिया पूरी कर ली गई थी, तो फिर पार्टी को चुनाव लड़ने से क्यों रोका गया?
भारतीय लोकहित पार्टी चुनाव मैदान से भले ही बाहर हो, लेकिन उनकी आवाज़ अब बिहार के गाँव-गाँव में गूंज रही है। यह सिर्फ एक राजनीतिक दल की नाराज़गी नहीं, बल्कि एक जनांदोलन की दस्तक है – जिसमें सवाल भी हैं, समाधान भी और संकल्प भी।
ब्यूरो रिपोर्ट
