
तमाम राजनीतिक दलों के लिए जनता का संदेश
पटना।
बिहार में चुनावी बुखार चढ़ने लगा है। हर दल मंच सजाकर जनता को साधने की कोशिश में है। कोई हजारों कुर्सियां लगवाता है, कोई लाखों का दावा करता है। लेकिन कांग्रेस की बक्सर रैली ने एक अलग ही संदेश दे दिया—कुर्सियां थीं, लेकिन कुर्सी पर बैठने वाला कोई नहीं था! कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे मंच से मोदी-नीतीश पर ‘कुर्सी प्रेम’ का तीर चला रहे थे, लेकिन नीचे हजारों कुर्सियां उस प्रेम की तरह खाली पड़ी थीं।

जनसभा में आई इस सन्नाटे की कीमत अब संगठन ने अपने ही नेता से वसूल ली है। जिला कांग्रेस अध्यक्ष मनोज कुमार पांडेय को पार्टी ने निलंबित कर दिया है। आरोप है कि खड़गे के इस अहम कार्यक्रम की तैयारी में उन्होंने गंभीर लापरवाही बरती। ना कार्यकर्ताओं से समन्वय, ना रणनीति—नतीजा ये हुआ कि 25 हजार कुर्सियों में से 85 प्रतिशत खाली रह गईं। विपक्षी दलों को बैठे-बिठाए कांग्रेस पर तंज कसने का मौका मिल गया।
खास बात ये है कि जिस बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं, वहां हर रैली, हर भीड़ एक संदेश बन रही है। ऐसे में खड़गे जैसे बड़े नेता की रैली का फ्लॉप हो जाना सिर्फ एक कार्यक्रम की विफलता नहीं, बल्कि पार्टी की जमीनी हकीकत भी बयां कर रहा है। कांग्रेस जहां खड़गे की सभा को शक्ति प्रदर्शन मान रही थी, वहीं नतीजा उलटा पड़ गया।
कार्यक्रम के दौरान खड़गे ने बीजेपी-जेडीयू गठबंधन को ‘सत्ता का सौदा’ बताया और नीतीश कुमार को ‘पाला बदलू’ करार दिया। उन्होंने गांधी परिवार की कुर्बानियों को गिनाते हुए, पीएम मोदी पर कई तीखे वार किए। मगर जनता उन आरोपों को सुनने के लिए मैदान में मौजूद नहीं थी। मंच पर शेर गरज रहे थे, लेकिन मैदान में सुनने वाला कोई नहीं था। भीषण गर्मी और शादी विवाह जैसे बहाने दिए गए, लेकिन सवाल यह भी है—क्या जनता अब भाषणों से ऊब चुकी है?
बक्सर की यह घटना सिर्फ एक नेता की निलंबन की कहानी नहीं है, बल्कि ये आने वाले चुनावों का ट्रेलर भी हो सकती है। सवाल ये है कि अगर रैली में जनता नहीं, तो EVM में वोट कहां से आएंगे? क्या कांग्रेस वक्त रहते जमीन पर दोबारा पकड़ बना पाएगी या फिर कुर्सियों की तरह ही उसका जनाधार भी खाली होता जाएगा?
ब्यूरो रिपोर्ट