पटना। छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित इलाकों में जहाँ लंबे समय से भय, संसाधनों की कमी और स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव ने लोगों के जीवन को कठिन बना रखा था, वहीं अब सुरक्षित मातृत्व और स्वच्छ स्वास्थ्य सेवाएँ नई उम्मीद बनकर उभर रही हैं। इस परिवर्तन के केंद्र में हैं पटना ज़िले के संपतचक, एकतापुरम (भोगीपुर) निवासी, सर्वोच्च मानवाधिकार संरक्षण सम्मान से सम्मानित, मिशन नौनिहाल सम्मान के संस्थापक-संरक्षक तथा यूनिसेफ के स्थायी सहयोगी वयोवृद्ध समाजसेवी सुखदेव बाबू।

यूनिसेफ के सहयोग से इन क्षेत्रों में पानी, स्वच्छता और हाइजीन (वॉश) प्रणाली को मजबूत बनाने में सुखदेव बाबू ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके दीर्घकालिक प्रयासों से दूरस्थ स्वास्थ्य केंद्रों में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है। छत्तीसगढ़ के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मद्देद में अब स्वच्छता, सुरक्षित प्रसव, स्टेराइल उपकरण, साफ-सुथरा लेबर रूम और प्रशिक्षित नर्सों की सेवाएँ उपलब्ध हैं। इससे ग्रामीण महिलाओं के मन में अस्पतालों के प्रति विश्वास बढ़ा है।

कभी भय के प्रतीक रहे इन क्षेत्रों में आज स्वास्थ्य जागरूकता, स्वच्छता और सुरक्षित मातृत्व का संदेश पहुँच रहा है। इसी बदलाव का लाभ 19 वर्षीय वंदना को मिला, जो पहले घर पर प्रसव कराने को मजबूर महसूस करती थी। लेकिन स्वास्थ्य केंद्र पहुँचने पर उसकी आशंकाएँ दूर हो गईं और उसका प्रसव सुरक्षित रहा। अब वंदना अपने गाँव की अन्य महिलाओं को भी संस्थागत प्रसव के लिए प्रेरित कर रही है।

यूनिसेफ ने सुखदेव बाबू के योगदान को सराहते हुए कहा कि उनकी सेवा-भावना ने वंदना जैसी अनेक माताओं को सुरक्षित मातृत्व का भरोसा दिया है। संस्था ने यह भी स्वीकार किया कि मद्देद जैसे कठिन और संवेदनशील क्षेत्रों में वॉश सेवाओं को सशक्त बनाने में ऐसे समर्पित सहयोगियों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है, जो वर्षों से जनहित के कार्यों में जुटे हैं।

ब्यूरो रिपोर्ट अजीत यादव