फुलवारी शरीफ।
बिहार, ओडिशा और झारखंड की प्रमुख धार्मिक संस्था इमारत-ए-शरीअत की मजलिस-ए-शूरा की बैठक में सुप्रीम कोर्ट द्वारा वक्फ़ एक्ट पर हाल ही में दिए गए अंतरिम फ़ैसले पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई।

अमीर-ए-शरीअत, मुफक्किर-ए-मिल्लत हज़रत मौलाना अहमद वली फैसल रहमानी ने इस फैसले को धार्मिक संस्थाओं और मानव समानता की संवैधानिक भावना के विरुद्ध बताया। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर कोई व्यक्ति 12 वर्षों तक किसी जमीन पर कब्ज़ा कर ले, तो उसे मालिक मान लेने की सोच कैसे उचित हो सकती है? उन्होंने कहा कि यह फैसला वक्फ़ संपत्तियों की सुरक्षा को कमजोर करता है और एक खतरनाक परंपरा को जन्म दे सकता है।

नाज़िम-ए-इमारत, मौलाना मुफ्ती मोहम्मद सईदुर्रहमान क़ासमी ने अपने प्रारंभिक संबोधन में कहा कि अदालत ने फैसले में मूल संवैधानिक सिद्धांतों की अनदेखी की है। उन्होंने वक्फ़ बोर्ड में गैर-मुसलमानों की शमूलियत को भी न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ़ करार दिया।

बैठक में शामिल अनेक विद्वानों और सदस्यों ने इस फैसले को मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता और वक्फ़ संपत्तियों के लिए गंभीर खतरा बताया।

मजलिस में यह प्रस्ताव रखा गया कि इस मुद्दे पर किताबचे प्रकाशित किए जाएं, एक बड़ी प्रेस कॉन्फ़्रेंस आयोजित की जाए, सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की जाए और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड व अन्य मुस्लिम संगठनों के साथ मिलकर साझा आंदोलन चलाया जाए। साथ ही, वक्फ़ संपत्तियों की रक्षा के लिए एक कानूनी समिति (लीगल कमेटी) के गठन का भी सुझाव दिया गया।

ब्यूरो रिपोर्ट अजीत यादव