काठमांडू। पांच दिनों तक चले उथल-पुथल और जेन-जी समूहों के तीखे विरोध के बाद नेपाल में संवैधानिक गतिरोध खत्म हो गया। शुक्रवार देर रात राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने शीतल निवास में देश की पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई। कार्की न केवल नेपाल की पहली महिला प्रधान न्यायाधीश रही हैं, बल्कि अब वह पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में भी इतिहास रच चुकी हैं। शपथ ग्रहण के साथ ही नेपाली संसद को भंग करने का निर्णय भी लागू कर दिया गया, जो जेन-जी आंदोलनकारियों की सबसे बड़ी मांग थी।

शपथ से पहले राष्ट्रपति, सेना प्रमुख अशोक राज सिगडेल, वरिष्ठ कानून विशेषज्ञ ओमप्रकाश आर्याल और जेन-जी प्रतिनिधियों के बीच सात घंटे तक चली मैराथन बैठक में संवैधानिक अड़चनों पर गहन चर्चा हुई। संवैधानिक विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि अस्थायी व्यवस्था के तहत गैर-दलीय नेतृत्व से ही स्थिरता बहाल हो सकती है। इसी सहमति के बाद कार्की का नाम आगे बढ़ाया गया। माना जा रहा है कि उनकी तीन सदस्यीय मंत्रिपरिषद का गठन शीघ्र होगा, जो निकट भविष्य में चुनावों की रूपरेखा तय करेगी।

इससे पहले गुरुवार को सेना मुख्यालय के बाहर जेन-जी गुटों के आपसी टकराव ने हालात गंभीर बना दिए थे। आंदोलनकारियों ने चेतावनी दी थी कि यदि अंतरिम नेतृत्व पर सहमति नहीं बनी तो शुक्रवार सुबह से विरोध और तेज होगा। रात भर अफवाहें फैलती रहीं कि पूर्व राजा वापसी कर सकते हैं, जिसके बाद सेना ने राजधानी की सुरक्षा को सख्त कर दिया। बख्तरबंद वाहनों, नाइट-विजन हेलीकॉप्टरों और अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती कर किसी भी आपात स्थिति से निपटने की तैयारी की गई।

अब प्रशासन ने अंतरिम सरकार के कामकाज के लिए नया कार्यालय स्थल चिह्नित कर लिया है, क्योंकि संसद भवन जलाए जाने के बाद उपयुक्त स्थान नहीं बचा था। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह कदम नेपाल को लोकतांत्रिक प्रक्रिया की ओर वापस ले जाएगा और जनता के मन में स्थिरता का भरोसा जगाएगा। देशवासियों को उम्मीद है कि कार्की का नेतृत्व पारदर्शिता और सुशासन के नए मानक स्थापित करेगा।

ब्यूरो रिपोर्ट