पटना।
पटना एम्स में विधायक चेतन आनंद और डॉक्टरों के बीच हुए टकराव ने न केवल संस्थान की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि हमारे समूचे स्वास्थ्य तंत्र की संवेदनशीलता, जवाबदेही और पारदर्शिता को भी कटघरे में ला खड़ा किया है। यह घटना एक मौका है आत्मविश्लेषण का — कि क्या देश के सबसे प्रतिष्ठित अस्पतालों में इलाज सेवा का रूप है या टकराव का मंच बन गया है?

एम्स जैसा संस्थान जहां देश भर के लाखों लोग अंतिम उम्मीद लेकर आते हैं, वहां सिर्फ इलाज नहीं, सम्मानजनक व्यवहार और भरोसेमंद व्यवस्था भी उतनी ही जरूरी है। लेकिन सच्चाई यह है कि मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टरों की पहचान स्पष्ट नहीं होती — कई बार वे जूनियर ट्रेनी होते हैं, कभी इंटर्न, और मरीज या उसके परिजन यह तक नहीं जान पाते कि उनका इलाज किस स्तर के चिकित्सक द्वारा हो रहा है। ऐसे में अगर गलती हो जाती है, तो उसका बोझ भी मरीज ही उठाता है। सवाल उठता है — क्या ऐसी स्थिति में डॉक्टरों से भी वैसी ही माफी की अपेक्षा नहीं होनी चाहिए जैसी वे जनप्रतिनिधियों से कर रहे हैं?

विवाद की गंभीरता के बीच यह भी समझना जरूरी है कि प्रोटोकॉल सभी के लिए समान होना चाहिए — चाहे वह डॉक्टर हो, गार्ड हो या विधायक। जिस तरह अस्पताल में व्यवस्था बनाए रखने के लिए सुरक्षाकर्मियों को संयम रखना चाहिए, उसी तरह जनप्रतिनिधियों को भी अस्पताल के नियमों और मरीजों की गोपनीयता का पालन करना चाहिए। क्योंकि जब एक आम मरीज अस्पताल आता है, तो वह सिर्फ इलाज नहीं चाहता — वह सम्मान, सुरक्षा और जवाबदेही भी चाहता है।

अब यह जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग की है कि वह अस्पतालों में ऐसी पारदर्शी व्यवस्था सुनिश्चित करे, जिससे हर मरीज को यह स्पष्ट रूप से जानकारी हो कि उसका इलाज कौन कर रहा है — ट्रेनी डॉक्टर, इंटर्न या विशेषज्ञ। डॉक्टरों की पहचान, रैंक और अनुभव स्तर की जानकारी उनके पहचान पत्र, कोट के रंग या ड्यूटी बोर्ड पर अंकित की जानी चाहिए। इससे न केवल पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि मरीजों का विश्वास भी बहाल होगा।

इस विवाद से सबक लेकर हमें यह समझना होगा कि अस्पताल अधिकार जताने की नहीं, कर्तव्य निभाने की जगह है। डॉक्टर और जनप्रतिनिधि दोनों समाज के लिए कार्य कर रहे हैं, और दोनों से उम्मीद भी समाज को बराबर है — विनम्रता, संवेदनशीलता और ज़िम्मेदारी की। जो आज हुआ, वह किसी एक का नहीं, पूरे तंत्र का प्रश्नचिन्ह है। और इसका उत्तर हम सबको मिलकर देना होगा — स्वास्थ्य को राजनीति नहीं, सेवा से जोड़कर।

ब्यूरो रिपोर्ट