पटना।
भारत को ‘विविधता में एकता’ की मिसाल कहा जाता है, जहां दर्जनों भाषाएं, सैकड़ों बोलियां और अनगिनत संस्कृतियां मिलकर एक राष्ट्र की आत्मा बनती हैं। लेकिन आज, उसी भारत में हिंदी बोलने वालों को डराया जा रहा है, धमकाया जा रहा है और अपमानित किया जा रहा है। क्या यह वही भारत है, जिसकी कल्पना संविधान निर्माताओं ने की थी?

हाल ही में मुंबई के घाटकोपर इलाके में एक उत्तर भारतीय युवक को इसलिए धमकाया गया क्योंकि वह मराठी नहीं बोलता था। उसे ग्राहक ने 100 रुपये का नोट दिखाकर धमकी दी—“मराठी नहीं बोलोगे तो शटर बंद करना पड़ेगा, नहीं तो मार पड़ेगी और बिहार लौटना पड़ेगा।” ये शब्द केवल किसी की व्यक्तिगत झुंझलाहट नहीं, बल्कि एक गहरी, खतरनाक सोच को उजागर करते हैं—भाषा की आड़ में नफरत की राजनीति।

इसी तरह की घटना कर्नाटक के बेंगलुरु में भारतीय स्टेट बैंक की एक शाखा में घटी, जहां बैंक मैनेजर ने हिंदी में बात की तो उस पर स्थानीय संगठनों ने विरोध शुरू कर दिया। दस्तावेज फाड़े गए, नारे लगे और उसे स्थानांतरित करना पड़ा। सवाल यह है—क्या अब हिंदी बोलना इतना बड़ा अपराध बन गया है कि कोई अपनी नौकरी खो दे?

ऐसी घटनाएं अब अपवाद नहीं रहीं। ज़ोमैटो और पिज्जा डिलीवरी बॉय, कैब ड्राइवर, और ऑटो वालों तक को उनकी भाषा के लिए अपमानित किया जा रहा है। यह प्रवृत्ति केवल भाषाई असहिष्णुता नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता पर सीधा हमला है। हिंदी भारत की राजभाषा है—यह वह भाषा है जिसमें संसद चलती है, सुप्रीम कोर्ट न्याय देता है और राष्ट्रपति देश को संबोधित करते हैं। फिर क्यों इस भाषा को कुछ राज्यों में अपमानित किया जा रहा है?

यह बात समझनी जरूरी है कि भारत जैसे बहुभाषी देश में सभी भाषाएं पूरक हैं, न कि प्रतिस्पर्धी। तमिल, तेलुगु, मराठी, बंगाली, पंजाबी—हर भाषा हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, लेकिन हिंदी वह धागा है जो पूरे देश को जोड़ती है। यह संवाद की सबसे बड़ी भाषा है, देश की पहचान है और हमारे संविधान में राजभाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है।

इसलिए अब समय आ गया है कि इस मुद्दे पर केवल प्रतिक्रियाएं नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई हो। सुप्रीम कोर्ट, संसद और राष्ट्रपति को इस पर विशेष बहस शुरू करनी चाहिए। जो व्यक्ति भारत में रहकर जानबूझकर हिंदी का विरोध करता है, हिंदी बोलने वालों को धमकाता है या अपमानित करता है—उस पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए। यह नफरत नहीं, बल्कि राष्ट्रहित में उठाया गया सख्त कदम होगा।

हमें यह भी समझना होगा कि भाषा कोई हथियार नहीं, संवाद का पुल होती है। अगर कोई स्थानीय भाषा न जान पाए, तो उसे गाली देने या अपमानित करने की जगह, उसे समझाने की कोशिश की जानी चाहिए। लेकिन जब सामने वाला हिंदी बोलता है और उसे केवल इसलिए मारा जाता है, धमकाया जाता है—तो वह न केवल उसकी स्वतंत्रता का उल्लंघन है, बल्कि यह भारत के संविधान का भी अपमान है।

सरकार को चाहिए कि वह सभी राज्यों में भाषाई सहिष्णुता और सांस्कृतिक समझदारी की शिक्षा शुरू करे। स्कूलों में हर बच्चे को यह सिखाया जाए कि भाषा कोई दुश्मन नहीं, दोस्त होती है। हमें मिलकर ऐसा भारत बनाना होगा, जहां कोई बच्चा, बुजुर्ग या महिला सिर्फ इसलिए डरे नहीं कि वो हिंदी बोलते हैं।

हिंदी बोलना अपराध नहीं है। यह हमारी आत्मा है, हमारी पहचान है, हमारी एकता की आवाज है। इसे दबाना भारत को तोड़ने की कोशिश है, और इसका विरोध हर सच्चे भारतीय का कर्तव्य है।

लेखक पंकज कुमार दुबे