
खगड़िया।
अंतर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक केंद्र के संस्थापक महर्षि अरविन्द ने गोपाष्टमी पर्व के अवसर पर कहा हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है और हर घर में तैयार होने वाले भोजन की पहली रोटी गाय माता के लिए रखी जाती है, लेकिन गोपाष्टमी के दिन गाय की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन घरों और गोशालाओं में गायों की पूजा करनी चाहिए। आगे उन्होंने कहा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने दीपावली के बाद इंद्र के अहंकार को तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर धारण किया था। तब से ही गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई थी। गोवर्धन पूजा के बाद अष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण पहली बार गायों को चराने के लिए लेकर गए थे। तब से यह दिन गोपाष्टमी पर्व के रूप में मनाया जाता है। शास्त्रों में इस बात को लेकर एक कथा का उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण छह बरस के हुए तो पहली बार गायें चराने की इच्छा व्यक्त की। भगवान श्री कृष्ण ने अपनी माता यशोदा और नंद बाबा के सामने जब यह बात रखी तो नंद बाबा ने ऋषि शांडिल्य से गौ चरण का मुहूर्त पूछा और ऋषि शांडिल्य ने अष्टमी ये दिन का मुहूर्त बताया। इसीलिए पड़ा गोपाल नाम। महर्षि अरविन्द ने कहा भगवान श्रीकृष्ण का गायों के प्रति अगाध प्रेम था। भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवद्भीता में कहा है, ‘धेनुनामस्मि कामधेनु’ अर्थात मैं गायों में कामधेनु हूं। गायों को पालने वाला अर्थात गोपाल और गायों के इंद्र यानी कि गोविंद नाम के चलते ही भगवान श्री कृष्ण को गोपाल और गोविंद नाम से भी संबोधित किया जाता है। महर्षि अरविन्द ने कहा नॉर्थ बिहार का सात दिवसीय सुप्रसिद्ध गोपाष्टमी मेला का आयोजन खगड़िया में होता है, जहां गौ माताओं को सजाया और संवारा जाता है। मेला में घूमने वाले सभी दर्शकों से अपील किया कि गौशाला के गौ माताओं का दर्शन, नमन और अपने अपने हाथों से चना और गुड़ अवश्य खिलाएं। पुण्य का भागी बनें। यथासंभव गौशाला कमिटी में दान राशि भी दें।
रिपोर्ट: इंदु प्रभा