
पटना।
पटना जिले की मनेर विधानसभा सीट, जो कि पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है, एक बार फिर चुनावी अखाड़े में चर्चा का केंद्र बन गई है। बीते 15 सालों से इस सीट पर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का एकछत्र राज रहा है, और भाई वीरेंद्र यादव यहां के निर्विवाद नेता के तौर पर स्थापित हो चुके हैं। 2010, 2015 और 2020 — तीनों विधानसभा चुनावों में उन्होंने विरोधियों को बड़े अंतर से हराकर अपनी लोकप्रियता और पकड़ को साबित किया है। 2020 में उन्होंने बीजेपी के निखिल आनंद को लगभग 32,917 वोटों के अंतर से मात दी थी।
ऐसे मजबूत किले को चुनौती देने इस बार लोजपा (रामविलास) के प्रदेश प्रवक्ता रहे जितेंद्र यादव मैदान में उतर रहे हैं। हालांकि, जितेंद्र यादव बख्तियारपुर के निवासी हैं और मनेर में उनकी कोई बड़ी राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रही है। ऐसे में उनकी पहचान और स्वीकार्यता को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। मनेर और बिहटा इलाके के स्थानीय मतदाता भी बाहरी प्रत्याशी को लेकर असमंजस में हैं। इससे पहले 2020 में बीजेपी प्रत्याशी निखिल आनंद, जो मनेर के ही निवासी थे, फिर भी हार गए थे, क्योंकि उनकी पहचान उस समय भी नई थी। अब लोजपा के प्रत्याशी जितेंद्र यादव को स्थानीय समर्थन कितना मिलेगा, यह भविष्य बताएगा।
इस सीट को लेकर पहले बीजेपी और जदयू, दोनों ही अपने-अपने दावे पेश कर रहे थे। कई स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं को उम्मीद थी कि श्रीकांत निराला या किसी अनुभवी चेहरे को मौका मिलेगा, लेकिन चिराग पासवान ने अपने कोटे से सीट लेते हुए जितेंद्र यादव को टिकट देकर सियासी समीकरण बदल दिए। इससे एनडीए के भीतर भी हलचल मच गई है। कई बीजेपी समर्थकों का कहना है कि अगर मनेर या बिहटा से कोई मजबूत स्थानीय चेहरा उतारा जाता, तो RJD को टक्कर दी जा सकती थी। फिलहाल ये असंतोष सोशल मीडिया से लेकर जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच देखा जा रहा है।
मनेर का जातीय समीकरण भी RJD के पक्ष में जाता दिखता है। यहां 26% यादव, 17% राजपूत और 6% मुस्लिम वोटर हैं। यादव वोटर आरजेडी का मजबूत आधार हैं, वहीं अतिपिछड़ा वर्ग की भी बड़ी संख्या यहां RJD के साथ जुड़ी मानी जाती है। ऐसे में बाहरी उम्मीदवार और कमजोर संगठन वाले लोजपा रामविलास के लिए यह मुकाबला बेहद चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
जितेंद्र यादव ने सोशल मीडिया पर दावा किया है कि उन्हें एनडीए समर्थित प्रत्याशी के तौर पर समर्थन मिलेगा और वे मनेर को विकास की नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि जहां भाई वीरेंद्र का एक दशक से ज्यादा का मजबूत जनाधार और कार्यकर्ता नेटवर्क है, वहीं जितेंद्र को न सिर्फ पहचान बनाने की चुनौती है बल्कि RJD के इस मजबूत गढ़ में अपनी पार्टी की पैठ बनाने का मुश्किल काम भी करना है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या लोजपा का यह ‘बाहरी पासा’ मनेर में कुछ नया गुल खिलाएगा या एक बार फिर RJD का ‘वीरेंद्र फैक्टर’ भारी पड़ेगा।
ब्यूरो रिपोर्ट