पटना।
मनेर विधानसभा सीट इन दिनों बिहार की सियासत का सबसे चर्चित रणक्षेत्र बन गई है। यहां से चार बार के विधायक और लगातार तीन बार राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के टिकट पर जीत चुके भाई वीरेंद्र यादव एक बार फिर मैदान में हैं। बीते डेढ़ दशक से मनेर में उनका दबदबा कायम है।
2010, 2015 और 2020—तीनों चुनावों में उन्होंने विरोधियों को बड़े अंतर से हराकर साबित किया कि मनेर की जनता अब भी उनके नाम पर वोट देती है। पिछली बार उन्होंने बीजेपी के निखिल आनंद को करीब 32,917 वोटों के विशाल अंतर से मात दी थी। हालांकि इस बार का चुनाव उनके लिए पहले से कहीं अधिक कठिन बताया जा रहा है।

इस बार मैदान में लोजपा (रामविलास) के युवा चेहरा जितेंद्र यादव हैं, जो एनडीए समर्थित प्रत्याशी के तौर पर ताल ठोक रहे हैं। हालांकि जितेंद्र यादव बख्तियारपुर के रहने वाले हैं और मनेर में उनकी कोई ठोस राजनीतिक जड़ नहीं रही है। “बाहरी उम्मीदवार” का टैग उनके लिए चुनौती बना सकता है, लेकिन चिराग पासवान के नाम पर पिछड़ा, अतिपिछड़ा और दलित वर्गों में जो नई ऊर्जा दिखाई दे रही है, वह RJD के पारंपरिक समीकरणों में खलल डाल सकती है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि इस बार चिराग फैक्टर मनेर में गेम चेंजर साबित हो सकता है।

मनेर की राजनीति में इस बार एक और दिलचस्प मोड़ है — भाई वीरेंद्र के पुराने विरोधी श्रीकांत निराला अब बीजेपी में हैं और एनडीए के लिए सक्रिय बताए जा रहे हैं। हालांकि वे कितना वोट ट्रांसफर करवा पाएंगे, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि प्रत्याशी उनके साथ कैसा संबंध स्थापित करते हैं।
वहीं, तेज प्रताप यादव की पार्टी से मैदान में उतरे शंकर यादव भी RJD के वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं।
प्रशांत किशोर के सक्रिय होने से जन सुराज के प्रत्याशी को भी हर वर्ग, खासकर युवाओं से, अच्छा-खासा समर्थन मिल सकता है।
निर्दलीय प्रत्याशी डीकेश का प्रभाव बहुत सीमित है, लेकिन एनडीए के लिए इस चुनाव में “बूंद-बूंद” वोट भी अहम साबित हो सकते हैं।

कहा जा रहा है कि मनेर के यादव वोटर अब पहले जैसी एकजुटता नहीं दिखा रहे हैं और स्थानीय स्तर पर नाराजगी भी धीरे-धीरे उभर रही है। भाई वीरेंद्र के लंबे कार्यकाल के बाद “परिवर्तन की चाहत” भी कुछ तबकों में देखी जा रही है।

उधर, एनडीए में भी इस सीट को लेकर खूब रस्साकशी रही। पहले बीजेपी और जदयू दोनों ने इस सीट पर दावा ठोका था, लेकिन अंततः चिराग पासवान ने अपने कोटे से सीट लेकर सियासी समीकरण पूरी तरह बदल दिए।
कई स्थानीय बीजेपी कार्यकर्ताओं का मानना है कि अगर मनेर या बिहटा के किसी स्थानीय चेहरे को मौका दिया जाता, तो RJD को और कड़ी टक्कर मिल सकती थी।
हालांकि एनडीए के पारंपरिक वोटर आमतौर पर कार्यकर्ताओं के निर्देशों पर नहीं, बल्कि गठबंधन के प्रति निष्ठा के आधार पर वोट देते हैं। फिर भी, स्थानीय कार्यकर्ताओं का सक्रिय सहयोग चुनावी माहौल में “ऊर्जा” का काम करता है।
जितेंद्र यादव का कहना है कि उन्हें एनडीए के सभी घटक दलों का आशीर्वाद प्राप्त है और वे “मनेर विकास” के एजेंडे पर चुनाव लड़ रहे हैं।

कुल मिलाकर, मनेर की सियासत इस वक्त एक दिलचस्प मोड़ पर खड़ी है —
एक तरफ चार बार के विधायक भाई वीरेंद्र यादव का अनुभव, संगठन और जनाधार है, तो दूसरी तरफ जितेंद्र यादव का युवा उत्साह और चिराग पासवान की बढ़ती लोकप्रियता।
जहां जातीय समीकरण अब भी RJD के पक्ष में झुके हुए हैं, वहीं जनता के मन में परिवर्तन की हल्की लहर भी सिर उठाती दिख रही है। आने वाले दिनों में साफ होगा कि मनेर की जनता अपने “पुराने सिपहसालार” पर भरोसा बनाए रखेगी या इस बार “बाहरी पासे का दांव” कुछ नया गुल खिलाएगा।

ब्यूरो रिपोर्ट