
नई दिल्ली।
बांग्लादेश की राजनीति में एक नया भूचाल आया है, जब देश के एक विशेष न्यायाधिकरण ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनके कुछ सहयोगियों के खिलाफ ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अदालत ने हसीना को मानवता के खिलाफ अपराधों में दोषी ठहराते हुए उन्हें मृत्युदंड की सजा दी। तीन जजों की बेंच ने यह निष्कर्ष निकाला कि 5 अगस्त को हुए छात्र विरोध प्रदर्शनों के दौरान हसीना और उनके सहयोगियों ने हिंसा भड़काने में सक्रिय भूमिका निभाई और प्रदर्शनकारियों की हत्या में शामिल रहे। इस फैसले में कमाल को भगोड़ा घोषित किया गया, जबकि चौधरी अब्दुल्ला को सजा सुनाई गई।
अदालत के अनुसार, हसीना सरकार ने छात्रों की मांगों की अनदेखी की और विरोध प्रदर्शन जब हिंसक रूप लेने लगे, तो उन्होंने उन्हें ‘रजाकार’ कहकर भड़का दिया। इसके बाद अवामी लीग की छात्र शाखाओं और युवा लीग के सदस्यों ने ढाका विश्वविद्यालय में प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर कड़ी कार्रवाई की, जिससे कई छात्रों की मौत हो गई। न्यायाधिकरण ने इस हिंसा को मानवता के खिलाफ गंभीर अपराध माना और हसीना को इस पूरे कांड का मास्टरमाइंड करार दिया। इस फैसले ने देश में गहरा हलचल मचा दी है और राजनीतिक माहौल को और अधिक संवेदनशील बना दिया है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस फैसले पर ध्यान गया है। भारत ने मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा कि वह बांग्लादेश में शांति, लोकतंत्र और स्थिरता बनाए रखने के लिए सभी हितधारकों के साथ बातचीत जारी रखेगा। भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि के तहत बांग्लादेश ने शेख हसीना और उनके सहयोगियों के प्रत्यर्पण की मांग की है। वहीं हसीना ने इस फैसले को अवैध और लोकतांत्रिक जनादेशहीन सरकार द्वारा स्थापित न्यायाधिकरण का निर्णय बताया है। उनके इस बयान ने राजनीतिक प्रतिक्रियाओं को और तेज कर दिया है।
ब्यूरो रिपोर्ट
