आरा/भोजपुर।
साहित्य और काव्य की संस्था “कविताई- नवसृजन की धारा” द्वारा आधुनिक युग के महान वीर रस के कवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती और हिंदी पखवारा के अवसर पर कविताई सम्मेलन का आयोजन किया गया। यह आयोजन पूर्व निगम पार्षद डॉ. जीतेन्द्र शुक्ल के आवास स्वर्ण कुंज प्रांगण में हुआ।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व ज़िलाधिकारी ब्रह्मेश्वर दसौंधी, प्रो. बलिराज ठाकुर और धीरेंद्र सिंह थे। विशिष्ट अतिथि के रूप में जगजीवन कॉलेज हिंदी विभाग के प्रो. अमरेश कुमार, वरिष्ठ कवि जनार्दन मिश्र और निर्मल सिंह उपस्थित रहे। कार्यक्रम की शुरुआत माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलित कर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए की गई। इसके बाद संस्था के सचिव राकेश ओझा और अश्विनी पांडेय द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई और काव्य मंच का शुभारंभ हुआ।

संस्था की अध्यक्षा मधुलिका सिन्हा ने स्वागत सम्बोधन में कहा कि सितंबर माह साहित्य के लिए विशेष है। इस महीने में हिंदी दिवस और कई महान साहित्यकारों का जन्म हुआ है, जिनमें रामधारी सिंह दिनकर का योगदान अमूल्य है।

पूर्व ज़िलाधिकारी ब्रह्मेश्वर दसौंधी ने कहा कि आरा की भूमि हमेशा से साहित्य और कला का पोषण करती रही है। यहां की युवा पीढ़ी को साहित्य के प्रति समर्पण देखकर उन्हें खुशी हुई।

प्रो. बलिराज ठाकुर ने साहित्य को समाज का दर्पण बताते हुए दिनकर की वीर रस कविताओं को जनजागरण और देशभक्ति का प्रतीक बताया। धीरेंद्र सिंह ने कहा कि वह कवि नहीं हैं, लेकिन इस कवि सम्मेलन के माहौल ने उन्हें कविता की ओर आकर्षित किया। उन्होंने अपनी रचनाओं से सभी को प्रेरित किया।

जगजीवन कॉलेज के प्रो. अमरेश कुमार ने हिंदी दिवस और हिंदी की संवैधानिक महत्वता पर प्रकाश डाला और दिनकर के साहित्य का महत्व समझाया। वरिष्ठ कवि जनार्दन मिश्र ने अपनी रचना “मेरा इश्क़ है धुआँ-धुआँ” प्रस्तुत की।

इस कवि सम्मेलन में लगभग 30 कवियों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की। इनमें सृजनलोक के संपादक संतोष श्रेयांश, कवियित्री मधुलिका सिन्हा, ओमप्रकाश मिश्र, राकेश गुड्डु ओझा, धीरेंद्र सिंह, सुमन सिंह, आशीष उपाध्याय, अजय ओझा, सुनील सुगंध, विकास पांडेय, पूनम पांडेय, पप्पू सिंह, दीपक सिंह निकुम्भ, जयमंगल मिश्र, शालिनी ओझा, जनमेजय ओझा मंजर, और रूपेन्द्र मिश्र सहित कई अन्य कवि शामिल थे।

रूपेन्द्र मिश्र ने रामधारी सिंह दिनकर की कविता “कलम आज उनकी जय बोल” का सस्वर पाठ किया और सामाजिक भेदभाव पर आधारित अपनी रचना “जाने मैं किसके हिस्से में” सुनाई।

इस आयोजन में साहित्य प्रेमियों और कवियों की एक लंबी फेहरिस्त शामिल थी, जिन्होंने अपने शब्दों से साहित्य और काव्य के महत्व को उजागर किया।

ब्यूरो रिपोर्ट: अनिल कुमार त्रिपाठी