खगौल/पटना।

“चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे…” और “लग जा गले के फिर ये हसीं रात हो न हो…” जैसे अमर गीतों की मधुर तान जब खगौल की संगीतमयी शाम में गूंजने लगी, तो माहौल मानो सुरों की मस्ती में डूब गया। बुधवार को रंगोली म्युजिकल ग्रुप, खगौल द्वारा आयोजित संगीतिक संध्या ‘एक शाम रफी और लता जी के नाम’ भावनाओं और सुरों की अनूठी अभिव्यक्ति बन गई।

इस संगीतिक कार्यक्रम का आयोजन शुभ आलय उत्सव पैलेस, बड़ी बदलपुरा में किया गया, जो मोहम्मद रफी की 45वीं और भारत रत्न लता मंगेशकर की तीसरी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पण का अवसर था। दीप प्रज्वलन और दोनों सुर सम्राटों के तैलचित्रों पर पुष्पांजलि अर्पित कर कार्यक्रम की शुरुआत की गई।

मुख्य अतिथि विधायक आई.पी. गुप्ता, प्राचार्य ज्ञानेश्वर प्रसाद, रंगकर्मी विनोद शंकर मिश्रा, नवाब आलम, मोहन पासवान और उनकी पत्नी अनिता देवी सहित अनेक विशिष्ट जनों की उपस्थिति ने समारोह की गरिमा बढ़ाई।

पवन कुमार दीपक ने स्वागत भाषण में रफी और लता जी के संगीत सफर को श्रद्धा के साथ याद किया। उन्होंने कहा, “यह केवल संगीत का कार्यक्रम नहीं, बल्कि भारतीय संगीत के दो सितारों को स्मरण करने का संकल्प है।” संचालन की भूमिका में एम.के. राजू ने कार्यक्रम को भावनात्मक ऊंचाई दी।

श्रिया लता, अंजलि और पवन की स्वर लहरियों ने वातावरण को संगीतमय बना दिया। पवन व अंजलि की जुगलबंदी “तूने ऐ रंगीले कैसा जादू किया…” और श्रिया लता का एकल गीत “दिल अपना और प्रीत पराई…” ने दर्शकों को साठ-सत्तर के दशक की स्वर्णिम स्मृतियों में लौटा दिया।

पवन कुमार द्वारा प्रस्तुत “सुख के सब साथी…” गीत ने रफी साहब की आत्मीयता को मंच पर जीवंत कर दिया।

इस अवसर पर सुजीत कुमार चेयरमैन, रंजन ठाकुर, लक्ष्मी पासवान समेत शहर के कई संगीतप्रेमी उपस्थित रहे। जैसे ही अंत में “तेरी बिंदिया रे…” और “ये जिंदगी उसी की है…” जैसे गीतों की धुनें गूंजीं, पंडाल तालियों और भावनाओं से गूंज उठा।

इस संगीतिक आयोजन ने एक बार फिर साबित किया कि खगौल केवल खगोलशास्त्र के लिए नहीं, बल्कि कला, संस्कृति और संगीत के लिए भी प्रसिद्ध है।

पवन कुमार दीपक के नेतृत्व में यह शाम खगौल के सांस्कृतिक आत्मसम्मान का प्रतीक बन गई।

“जब रफी साहब की रूहानी आवाज़ और लता जी की मधुरता एक मंच पर उतरती है, तब केवल सुर नहीं सजते, बल्कि यादें इतिहास बन जाती हैं।”

ब्यूरो रिपोर्ट अजीत यादव