
नई दिल्ली/पटना।
राम मंदिर आंदोलन के प्रतीक और समाजिक समरसता के ध्वजवाहक कामेश्वर चौपाल का दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। वे लंबे समय से अस्वस्थ थे और इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन से न केवल बिहार बल्कि पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है।
राम मंदिर आंदोलन का ऐतिहासिक चेहरा
9 नवंबर 1989 का वह ऐतिहासिक दिन जब अयोध्या में राम जन्मभूमि पर पहली ईंट रखी गई थी, और इसे रखने का सौभाग्य किसी संत-महंत या राजनेता को नहीं, बल्कि बिहार के सहरसा जिला वर्तमान सुपौल जिला के कमरैल गांव के एक साधारण दलित परिवार में जन्मे कामेश्वर चौपाल को मिला। उस समय वे विश्व हिंदू परिषद के सक्रिय स्वयंसेवक थे। यही क्षण उन्हें ‘प्रथम कारसेवक’ के रूप में इतिहास में अमर कर गया।
राजनीति और समाज सेवा में अहम भूमिका
कामेश्वर चौपाल न सिर्फ धार्मिक आंदोलन का हिस्सा थे, बल्कि उन्होंने बिहार विधान परिषद के सदस्य के रूप में भी अपनी छवि को मजबूत किया। बिहार बीजेपी में उनका कद काफी बड़ा था और वे अपनी साफ-सुथरी छवि और समाज के हर वर्ग से जुड़ाव के लिए प्रसिद्ध थे। वे राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के स्थायी सदस्य और विश्व हिंदू परिषद के प्रांतीय अध्यक्ष भी रहे।
https://x.com/BJP4Bihar/status/1887702401693720621?t=X_u7IlRCt-54hHD0KEA_kg&s=19
बीजेपी ने दी श्रद्धांजलि
बिहार बीजेपी ने अपने आधिकारिक X (पूर्व में ट्विटर) हैंडल पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए लिखा,
“राम मंदिर की पहली ईंट रखने वाले, पूर्व विधान पार्षद, दलित नेता, श्री कामेश्वर चौपाल जी के निधन की खबर सामाजिक क्षति है। उन्होंने सम्पूर्ण जीवन धार्मिक और सामाजिक कार्यों में समर्पित किया। मां भारती के सच्चे लाल थे। ईश्वर पुण्यात्मा को अपने श्री चरणों में स्थान एवं उनके परिजनों को संबल प्रदान करें।”
अंतिम यात्रा का कार्यक्रम
उनका पार्थिव शरीर आज दोपहर 2 बजे तक पटना एयरपोर्ट पहुंचेगा, जिसके बाद उन्हें भाजपा प्रदेश कार्यालय में अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा। बड़ी संख्या में नेता, कार्यकर्ता और आम लोग उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए उमड़ेंगे।
सादगी और संघर्ष की मिसाल
कामेश्वर चौपाल का जीवन इस बात का प्रतीक था कि साधारण पृष्ठभूमि से आने वाला व्यक्ति भी अपने समर्पण और संघर्ष के बल पर समाज में अमिट छाप छोड़ सकता है। उनका जाना एक युग का अंत है, लेकिन उनके विचार और योगदान सदैव प्रेरणा के रूप में जीवित रहेंगे।
ब्यूरो रिपोर्ट