पटना।
पटना जिले के मनेर से एक ऐसी प्रेरणादायी कहानी सामने आई है, जो गुरु-शिष्य परंपरा की अमर गाथा को फिर से जीवंत कर देती है। यहां के शिक्षक मनोज कुमार चौरसिया ने न केवल किताबों से ज्ञान दिया, बल्कि अपने कर्मों से भी यह दिखा दिया कि गुरु वास्तव में देव तुल्य क्यों माने जाते हैं।

भारत की सांस्कृतिक परंपरा में जितिया व्रत को माताएं अपने पुत्र की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं। लेकिन मनेर के इस शिक्षक ने इसे एक नया अर्थ दिया—उन्होंने यह व्रत अपने विद्यालय के हर बच्चे के लिए रखा। लगातार 12वीं बार, बिना जल पिए 36 घंटे का निर्जला व्रत रखकर उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की कि उनके छात्रों का भविष्य उज्ज्वल और सुनहरा हो।

मनोज कुमार चौरसिया ने वर्ष 2014 में सुअरमरवा पंचायत के झुग्गी-झोपड़ी इलाके के प्राथमिक विद्यालय में बतौर प्रधान शिक्षक योगदान दिया था। तब यह स्कूल संसाधनों की कमी और उपेक्षा के कारण पिछड़ा हुआ था। लेकिन उनकी लगन, ईमानदारी और प्रेम ने न केवल विद्यालय को नई दिशा दी, बल्कि ग्रामीणों के दिल भी जीत लिए।

भत्तेहेरी गांव के ग्रामीण गर्व से कहते हैं, “श्री चौरसिया के आने से विद्यालय में जैसे नई रोशनी फैल गई हो। बच्चे अब पढ़ाई के प्रति उत्साहित हैं, और गांव का माहौल भी बदला है।”

स्वयं मनोज चौरसिया का कहना है,

> “इस धरती पर माता-पिता के बाद यदि कोई बच्चों का भला चाहता है, तो वह शिक्षक ही है। माता-पिता के संयुक्त रूप में मैं भी एक गुरु होने के नाते अपना धर्म निभा रहा हूँ। भले ही मैं माता-पिता का स्थान नहीं ले सकता, लेकिन अपने बच्चों (विद्यार्थियों) के लिए व्रत रखना मेरा कर्तव्य है।”



आज जब आधुनिकता की दौड़ में गुरु-शिष्य का बंधन अक्सर कमजोर होता जा रहा है, मनेर का यह उदाहरण पूरे समाज को एक नई दिशा दिखाता है। यह बताता है कि सच्चा शिक्षक सिर्फ ज्ञान नहीं देता—वह अपने छात्रों के सुख, समृद्धि और भविष्य के लिए स्वयं को समर्पित कर देता है।