
राजनीतिक और आध्यात्मिक हस्तियों की रही खास उपस्थिति, पारित हुए चार ऐतिहासिक संकल्प
पटना।
ऐतिहासिक गांधी मैदान रविवार को एक भव्य आध्यात्मिक संगम का साक्षी बना, जहां देशभर से जुटे संतों और श्रद्धालुओं ने सनातन धर्म की पुनर्स्थापना और सशक्तिकरण का संकल्प लिया। श्रीराम कर्मभूमि न्यास के तत्वावधान में आयोजित “सनातन महाकुंभ” ने परशुराम जन्मोत्सव के समापन अवसर को एक विराट सांस्कृतिक चेतना में बदल दिया। लाखों श्रद्धालुओं के बीच एक स्वर में संतों ने उद्घोष किया— “भगवा-ए-हिंद चाहिए”, तो वहीं मंच से संतों, विचारकों और राजनेताओं ने एक सुर में सनातन की प्रासंगिकता और सामर्थ्य को रेखांकित किया।

कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने किया। उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक और गोस्वामी तुलसीदास की चौपाई के माध्यम से धर्म की रक्षा के संकल्प को दोहराया। उन्होंने कहा कि धर्म का मर्म मानवता और न्याय है, और यही सनातन का आधार भी है।
तुलसीपीठाधीश्वर जगद्गुरु श्रीरामभद्राचार्य ने सभा की अध्यक्षता करते हुए कहा कि जिस तरह अयोध्या में राम मंदिर बनकर तैयार हुआ, उसी तरह सीतामढ़ी के पुनौरा धाम में माता जानकी के भव्य मंदिर के निर्माण को भी हम सबको मिलकर मूर्त रूप देना है। उन्होंने दो टूक कहा— “जो सनातन का बुरा चाहेगा, उसका भला कभी नहीं हो सकता।”

बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने अपने भाषण में सनातन धर्म की अवधारणा को अत्यंत सरल शब्दों में व्याख्यायित करते हुए कहा कि यह किसी पंथ, जाति या समुदाय का विषय नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है। उन्होंने कहा कि अब सनातन केवल ग्रंथों में नहीं, जन-जन के जीवन में उतर रहा है। उन्होंने वृंदावन में प्रस्तावित आगामी पदयात्रा का आह्वान करते हुए यह भी ऐलान किया कि बिहार चुनाव के बाद वे फिर गांधी मैदान में दरबार लगाएंगे और एक विशेष पदयात्रा केवल हिंदुओं के लिए करेंगे।
राज्य के दोनों उपमुख्यमंत्रियों ने भी आयोजन में सक्रिय सहभागिता निभाई। विजय कुमार सिन्हा ने भगवान परशुराम को न्याय और धर्म के प्रतीक के रूप में स्मरण किया। वहीं सम्राट चौधरी ने सनातन धर्मावलंबियों को आयोजन की सफलता पर शुभकामनाएं दीं और इसे सनातन पुनर्जागरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।
इस अवसर पर स्वामी ज्ञानानंद जी ने कहा कि यह महाकुंभ केवल धार्मिक समागम नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना के जागरण का केंद्र बन रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सनातन कोई सीमित विचारधारा नहीं, बल्कि वैश्विक कल्याण की धारा है।
श्रीराम कर्मभूमि न्यास के संरक्षक स्वामी अनंताचार्य ने जातीय विद्वेष के खिलाफ चेताते हुए कहा कि आज सनातन को कमजोर करने के लिए जातिगत भेदभाव को हथियार बनाया जा रहा है, और इससे बचाव ही सनातन रक्षा है।
महाकुंभ के मंच से चार प्रमुख प्रस्ताव पारित किए गए। इनमें बक्सर के सिद्धाश्रम में भगवान श्रीराम की विशाल प्रतिमा और वैदिक विश्वविद्यालय की स्थापना, पुनौरा धाम में भव्य सीता मंदिर निर्माण, मंदार पर्वत की सांस्कृतिक पुनर्स्थापना, और देश के मठ-मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर उन्हें स्वायत्त सेवा-ज्ञान केंद्र बनाना शामिल है।
कार्यक्रम के दौरान “सनातन संग भारत” और “सनातन संवाद स्मारिका” नामक दो पुस्तकों का विमोचन पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे और लेखक कुमार सुशांत ने किया। श्री चौबे ने इसे भारत की आत्मा के स्वर के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहा कि जब तक सनातन जीवित है, भारत अक्षुण्ण रहेगा।
आयोजन में उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्य राज्यों से आए अनेक प्रमुख संत, समाजसेवी और राजनेता भी मौजूद रहे। मंच संचालन श्रीराम कर्मभूमि न्यास के अध्यक्ष कृष्णकांत ओझा ने किया। कार्यक्रम में राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा, अभिजीत कश्यप, अर्जित शाश्वत चौबे, संजय चौधरी, नीरज कुमार, विनोद ओझा, रजनीश तिवारी, अविरल चौबे, नागेश सम्राट सहित अनेक आयोजक सक्रिय रूप से उपस्थित रहे। आयोजन में रामायण रिसर्च काउंसिल, अखिल विश्व परशुराम महासंघ और राष्ट्रकवि स्मृति न्यास जैसी संस्थाओं की अहम भूमिका रही।
गांधी मैदान का यह दृश्य एक बार फिर साबित कर गया कि जब धर्म और संस्कृति का संगम होता है, तो एक नया सामाजिक-सांस्कृतिक इतिहास लिखा जाता है।
ब्यूरो रिपोर्ट