
पटना।
राजभवन, पटना के दरबार हॉल में पद्मश्री से सम्मानित विख्यात पुरातत्वविद् के.के. मुहम्मद के सम्मान में समर्पित अभिनंदन ग्रंथ “ग्लिंपसेज ऑफ ऑर्ट एंड आर्कियोलॉजी ऑफ इंडिया एंड साउथ एशिया” का विमोचन समारोह आयोजित हुआ। इस गरिमामयी अवसर पर बिहार के राज्यपाल समेत देशभर के अनेक इतिहासकार, पुरातत्वविद् और विद्वान उपस्थित थे। समारोह में वक्ताओं ने के.के. मुहम्मद के अद्वितीय योगदानों को विरासत के रूप में याद करते हुए उन्हें भारतीय पुरातत्व के क्षेत्र में प्रेरणास्रोत बताया।
वक्ताओं में एक अतिथि ने अपने संबोधन में के.के. मुहम्मद से जुड़े प्रेरक अनुभव साझा करते हुए बताया कि चंबल के बटेश्वर मंदिर परिसर के पुनर्निर्माण के दौरान डकैतों से सामना होने पर भी उन्होंने बिना भय के कार्य किया और उन्हें भी संरक्षण कार्य में सहभागी बनाया। इसी तरह छत्तीसगढ़ के उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में भी उन्होंने निर्भीक होकर विरासतों की रक्षा की। यह उनके व्यक्तित्व की सत्यनिष्ठा और साहस की मिसाल है, जिससे प्रेरणा लेकर अनेक असंभव कार्य संभव हो सके।
उक्त अतिथि ने यह भी बताया कि कैसे के.के. मुहम्मद ने अयोध्या में रामजन्मभूमि क्षेत्र में 1976 में हुए उत्खनन के दौरान ऐतिहासिक तथ्यों के साथ राष्ट्र के समक्ष सत्य को रखने का साहस दिखाया। अपने वरिष्ठ इतिहासकारों के विपरीत उन्होंने बिना भय के मंदिर के अवशेषों की पुष्टि की, जो कि एक सरकारी अधिकारी के रूप में उनकी सत्यनिष्ठा को दर्शाता है। उनके इस साहसी कार्य ने भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय को प्रमाणिकता प्रदान की।
अंत में उन्होंने ‘ग्लिंपसेज ऑफ ऑर्ट एंड आर्कियोलॉजी’ के संपादकों गीता और ओ.पी. पांडेय को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि केवल एक ही ग्रंथ उनके कृतित्व को समाहित नहीं कर सकता। केसरिया, राजगृह, वैशाली जैसे स्थलों से जुड़ी उनकी ऐतिहासिक गाथाओं को संरक्षित करने हेतु आगे भी ऐसे कई वाल्यूम प्रकाशित किए जाने चाहिए। इस दिशा में मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है, जिससे आने वाली पीढ़ियाँ प्रेरणा प्राप्त कर सकें।
ब्यूरो रिपोर्ट