
आरा (भोजपुर)।
सदर प्रखंड के खजुरिया में हो रहे श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ भव्य भंडारे के साथ समापन हो गया। इस दौरान काफी संख्या में जुटे साधु संतों को विदाई दी गई तथा हजारों की संख्या में लोगों ने प्रसाद लिया. यज्ञ को सफल बनाने में खजुरिया सहित आसपास के गांव के सैकड़ो की संख्या में लोग लग रहे। श्री जियर स्वामी जी महाराज ने प्रवचन करते हुए कहा कि राजा एवं प्रजा दोनों भोगते हैं एक-दूसरे के कर्मों का परिणाम मनुवादिता के सिद्धान्त से ही संचालित होती है मानवता मन नहीं, बुद्धि और विवेक से लें कोई निर्णय मानव जीवन पर अन्न और संग का गहरा प्रभाव होता है। हम जैसा अन्न ग्रहण करते हैं वैसा मन बनता है। जैसी संगति करते हैं, वैसा आचरण होता है। इसलिए दुष्टों का अन्न और संग दोनों विनाशकारी होता है। श्री जीयर स्वामी जी ने श्रीमद् भागवत महापुराण कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अधर्म, अनीति और अन्याय के सहारे कुछ समय के लिये समाज में वर्चस्व कायम किया जा सकता है, लेकिन यह स्थाई नहीं हो सकता। नीति, न्याय और सत्य ही स्थायित्व देता है। श्री स्वामी ने कहा कि भीष्म पितामह 58 दिनों से वाण-शैया पर लेटे थे। उन्हें याद कर कृष्ण की आँखों में आँसू आ गये। युधिष्ठिर ने आँसू का कारण पूछा। कृष्ण ने कहा कि कुरू वंश का सूर्य अस्ताचलगामी हैं। उनके दर्शन किया जाय। द्रौपदी सहित पाँचों पाण्डव वहाँ पहुँचे। श्री कृष्ण के आग्रह पर भीष्म राजधर्म और राजनीति का उपदेश देने लगे। द्रौपदी मुस्कुरा दी। भीष्म ने मुस्कुराने का राज पूछा। द्रौपदी ने कहा कि आज आप उपदेश दे रहे हैं कि ‘अन्याय नहीं करना चाहिए। अन्यायी का साथ नहीं देना चाहिए और अन्याय होते देखना नहीं चाहिए। चीर-हरण के वक्त आपकी यह नीति और धर्म कहाँ थे?’ भीष्म ने कहा कि उस वक्त अन्न और संग के दोष का मुझ पर प्रभाव था। मनुष्य अर्थ (वित्त) का दास होता है। अर्थ किसी का दास नहीं होता। उन दिनों में दुर्योधन के अर्थ से पल रहा था। गलत लोगों का अन्न और संग ग्रहण नहीं करना चाहिए। धीर और वीर पुरूष को भाग्यवादी नहीं, कर्मवादी हो।
ब्यूरो रिपोर्ट: अनिल कुमार त्रिपाठी