काराकाट (रोहतास)।
चिकसिल गांव के निवासी और बिहार सैन्य पुलिस के हवलदार राम इकबाल सिंह — जो पूर्व मुख्यमंत्री की सुरक्षा दस्ते में भी तैनात रह चुके हैं — अपनी ही पुश्तैनी जमीन के लिए लगातार प्रशासनिक दरवाजों पर न्याय की गुहार लगा रहे हैं। वर्ष 2016 में मापी वाद संख्या 90/2015-16 के तहत न्यायालय के आदेश पर तत्कालीन अंचलाधिकारी ने पुलिस बल की मौजूदगी में उन्हें जमीन पर विधिवत कब्जा दिलाया था। लेकिन वर्ष 2024-25 में फिर से वही जमीन स्थानीय दबंगों के निशाने पर आ गई है, और अब यह मामला प्रशासनिक लापरवाही व मिलीभगत का प्रतीक बनता जा रहा है।

राम इकबाल सिंह ने बताया कि जब अवैध रूप से कब्जा करने वालों ने उनकी जमीन पर दोबारा घेराबंदी तोड़ दी और विरोध करने पर रंगदारी मांगने, मारपीट करने तथा जान से मारने की धमकी दी, तब उन्होंने 22 अप्रैल 2025 को मुख्यमंत्री, भूमि सुधार एवं राजस्व मंत्री आलोक मेहता, रोहतास के जिलाधिकारी, एसपी, काराकाट सीओ और थानाध्यक्ष को आवेदन देकर न्याय की गुहार लगाई। मंत्री आलोक मेहता ने मामले को गंभीर मानते हुए जिला प्रशासन को कार्रवाई के निर्देश दिए, जिसके क्रम में जिलाधिकारी ने आदेश जारी किया।

परंतु हैरानी की बात यह रही कि नए अंचलाधिकारी रितेश कुमार ने पहले ‘समयाभाव’ का हवाला देकर कार्रवाई से किनारा कर लिया। बाद में उन्होंने उसी जमीन की दोबारा मापी का आदेश दे दिया, जिसकी मापी पहले ही हो चुकी थी और कोर्ट के आदेश पर विधिवत निष्पादन भी हो चुका था। सीओ के आदेश पर पीड़ित ने फिर से ऑनलाइन नापी के लिए प्रक्रिया के तहत आवश्यक दस्तावेज भी जमा कर दिए थे, जबकि विपक्षी पक्ष की ओर से कोई वैध दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया।

राम इकबाल का आरोप है कि 22 अप्रैल को जब अमीन मापी के लिए आया, तो उसने केवल प्लॉट पर फीता गिरा कर गांव वालों से नापी से पूर्व हीं हस्ताक्षर करवा लिए और कह दिया कि नापी हो गई है, जबकि वास्तव में नापी नहीं की गई। इसके बाद अमीन विपक्षी लोगों के साथ एकांत में बातचीत करता दिखा और नापी स्थल से चुपचाप चला गया। इससे पीड़ित को यह संदेह और गहरा हो गया कि अंचल प्रशासन के कुछ अधिकारी दबंगों के साथ मिलकर न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं।

स्थानीय पुलिस द्वारा की गई प्राथमिक जांच में भी यह पुष्टि हुई कि राम इकबाल सिंह की खेत में लगी बांस-बल्ली तोड़ दी गई थी। यह घटना जमीन पर अवैध कब्जा और हिंसा की पुष्टि करती है। परंतु अब तक दोषियों के विरुद्ध न कोई गिरफ्तारी हुई, न ही प्रशासनिक स्तर पर कोई ठोस कदम उठाया गया है।

राम इकबाल सिंह ने कहा कि जब राज्य की सुरक्षा में योगदान देने वाला बिहार पुलिस का एक जवान ही न्याय के लिए दर-दर भटक रहा है, तो एक आम नागरिक की स्थिति की कल्पना की जा सकती है। उन्होंने कहा कि अंचलाधिकारी की भूमिका की जांच होनी चाहिए, और यदि उनका रवैया पक्षपातपूर्ण या मिलीभगत वाला पाया जाता है, तो उन्हें तत्काल बर्खास्त किया जाए।

जनहित में सवाल उठते हैं:
जब कोर्ट व सीओ स्तर पर फैसला हो चुका है, तो दोबारा मापी क्यों? क्या नए अंचलाधिकारी दबंगों से मिलकर न्याय को पलट रहे हैं? पीड़ित द्वारा 22 अप्रैल 2025 को दिए गए आवेदन के बावजूद निष्क्रिय प्रशासन की चुप्पी क्या दर्शाती है?
          राज्य सरकार, जिला प्रशासन और भूमि सुधार विभाग इस मामले में संज्ञान लेकर तत्काल दोषियों पर सख्त कार्रवाई करें और राम इकबाल सिंह को शीघ्र न्याय दिलाएं। वरना यह मामला प्रशासनिक व्यवस्था की साख पर गहरे सवाल खड़े करता रहेगा।

ब्यूरो रिपोर्ट